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Mirabai Ka Jivan Parichay – मीराबाई का जीवन परिचय और प्रमुख रचनाएँ

By EXAM JOB EXPERT Published: September 10, 2024

Mirabai Ka Jivan Parichay : मध्यकालीन भक्ति आंदोलन की आध्यत्मिक प्रेरणा ने जिन कवियों को जन्म दिया उनमें मीराबाई का विशिष्ट स्थान है। मीराबाई भक्तिकाल की एक ऐसी संत हैं, जिनका सबकुछ भगवान श्री कृष्ण के लिए समर्पित था। वहीं उनके पद अपनी मार्मिकता एवं मधुरिमा के कारण इतने लोकप्रिय हुए कि हिंदी व अन्य भाषा भाषियों ने भी इन्हें आत्मसात् कर लिया। क्या आप जानते हैं कि उनके पद पूरे उत्तर भारत सहित गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल और तमिलनाडु तक प्रचलित हैं। मीराबाई हिंदी और गुजराती दोनों की कवयित्री मानी जाती हैं। 

‘नरसीजी का माहरा’, ‘गीतगोविंद की टीका’, ‘राग गोविंद’ और ‘राग सोरठ’, मीराबाई की कुछ प्रमुख रचनाएँ मानी जाती हैं। आपको बता दें कि मीराबाई की रचनाओं को विद्यालय के अलावा बीए और एमए के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। उनकी कृतियों पर कई शोधग्रंथ लिखे जा चुके हैं। वहीं, बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी मीराबाई का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। 

आइए अब मीराबाई का जीवन परिचय का जीवन परिचय (Mirabai Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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नाम मीराबाई (Mirabai) 
जन्म 1503 
जन्म स्थान चोकड़ी (कुड़की) गांव, जोधपुर, राजस्थान 
गुरु का नाम संत रैदास 
पिता का नाम रतन सिंह राठौड़
माता का नाम वीर कुमारी
श्वसुर का नाम महाराणा सांगा 
पति का नाम भोजराज
साहित्यकाल भक्तिकाल 
विधापद 
भाषा राजस्थानी, ब्रज 
प्रमुख रचनाएँ ‘नरसीजी का माहरा’, ‘गीतगोविंद की टीका’, ‘राग गोविंद’ और ‘राग सोरठ’
मृत्यु 1546 

राजस्थान के जोधपुर में हुआ था जन्म – Mirabai Ka Jivan Parichay

मीरा बाई का जीवन परिचय:

मीरा बाई का जन्म 1498 ई. में राजस्थान के जोधपुर जिले के मेड़ता में हुआ था। मीरा बाई भारतीय संत कवयित्री थीं और भगवान श्रीकृष्ण की भक्त थीं। वे राठौर राजवंश से संबंधित थीं और उनके पिता रतनसिंह राठौर थे। मीरा बाई का विवाह मेवाड़ के राजा भोजराज से हुआ था, जो महाराणा सांगा के पुत्र थे। हालांकि, उनके पति का अल्प आयु में ही निधन हो गया, और इसके बाद मीरा बाई ने अपने आप को पूरी तरह से भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में समर्पित कर दिया।

मीरा बाई का जीवन त्याग, प्रेम, और भक्ति से परिपूर्ण था। उन्होंने समाज के उन नियमों का पालन नहीं किया जो महिलाओं के लिए तय किए गए थे, बल्कि वे एक साध्वी के रूप में कृष्ण भक्ति में लीन रहीं। उनके भक्ति गीत आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं और वे ‘मीरा के पद’ के नाम से जाने जाते हैं।

उनके गीतों में कृष्ण के प्रति असीम प्रेम और समर्पण की भावना प्रकट होती है। उनका जीवन समाज के सामान्य मानकों से अलग रहा, और उन्हें अपने परिवार और समाज से भी विरोध का सामना करना पड़ा। लेकिन मीरा बाई ने सभी बाधाओं को पार कर अपनी भक्ति जारी रखी।

मीरा बाई का देहांत 1547 ई. में हुआ माना जाता है।

13 वर्ष की आयु में हुआ विवाह

जब मीराबाई 13 वर्ष की हुई तो उनके माता-पिता उनका विवाह करना चाहते थे, किंतु मीराबाई प्रभु श्रीकृष्ण को अपना पति मानने के कारण किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थी। लेकिन उनकी इच्छा के विरुद्ध जाकर उनके घरवालों ने उनका विवाह मेवाड़ के ‘महाराणा सांगा’ के पुत्र कुवंर ‘भोजराज’ से करा दिया, जो आगे चलकर ‘महाराणा कुंभा’ (Kumbha of Mewar) कहलाए।

मीराबाई की कृष्ण-भक्ति

मीराबाई की कृष्ण-भक्ति:

मीराबाई की कृष्ण-भक्ति उनके जीवन का केंद्र बिंदु थी। उनका पूरा जीवन भगवान श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, समर्पण और भक्ति का उदाहरण है। बचपन से ही मीराबाई श्रीकृष्ण के प्रति आकर्षित थीं। एक घटना के अनुसार, जब मीरा ने अपने बाल्यकाल में एक विवाह समारोह देखा, तो उन्होंने अपनी माँ से पूछा कि उनका दूल्हा कौन है। इस पर उनकी माँ ने हंसते हुए श्रीकृष्ण की मूर्ति को दिखाकर कहा कि यही तुम्हारे पति हैं। इस उत्तर ने मीरा के मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और भक्ति का बीज बो दिया।

कृष्ण को पति मानना: मीराबाई ने अपने जीवन में श्रीकृष्ण को अपना पति, प्रेमी, और सखा मान लिया। जब उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ, तब भी उनका सच्चा समर्पण केवल श्रीकृष्ण के प्रति ही था। उन्होंने सांसारिक संबंधों को पीछे छोड़कर भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में अपनी आत्मा को समर्पित किया। उनके पदों में यह गहरा संबंध स्पष्ट रूप से दिखता है, जहां वे कृष्ण को अपने प्रियतम के रूप में वर्णित करती हैं।

समाज और परिवार का विरोध: मीरा की भक्ति समाज और परिवार के नियमों के विपरीत थी। वे घर की चारदीवारी में सीमित नहीं रहीं और खुले रूप से मंदिरों में जाकर भजन-कीर्तन करतीं। इस तरह का आचरण उस समय की समाज व्यवस्था में महिलाओं के लिए स्वीकार्य नहीं था। उनके परिवार ने भी उनके इस व्यवहार का विरोध किया, लेकिन मीरा ने किसी भी सामाजिक नियम को अपने भक्ति मार्ग में रुकावट नहीं बनने दिया। उनके परिवार ने उन्हें जहर देने का भी प्रयास किया, लेकिन मीराबाई पर इसका कोई असर नहीं हुआ, क्योंकि वे श्रीकृष्ण की कृपा में लीन थीं।

भक्ति में समर्पण: मीराबाई की कृष्ण-भक्ति में समर्पण की चरम सीमा थी। उनके द्वारा रचित भजन और पद आज भी गाए जाते हैं, जो श्रीकृष्ण के प्रति उनकी अनन्य भक्ति को प्रकट करते हैं। उनके पदों में वे भगवान को अपने मन की व्यथा सुनाती हैं, उनसे मिलने की आकांक्षा व्यक्त करती हैं, और उनके साथ मिलने के लिए अपने जीवन के सारे बंधनों को छोड़ देने की बात करती हैं। उनके प्रसिद्ध पद “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो” और “मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई” उनकी भक्ति की गहराई को दर्शाते हैं।

समर्पण का अंतिम रूप: माना जाता है कि मीराबाई का अंत समय भी उनकी भक्ति की चरम अवस्था में हुआ। एक कथा के अनुसार, वे श्रीकृष्ण की मूर्ति में लीन होकर अंतर्ध्यान हो गईं, और उनके शरीर का कोई निशान नहीं मिला। इस घटना को भक्तिकाल के संतों द्वारा अद्वितीय और अलौकिक घटना के रूप में माना जाता है।

मीराबाई की कृष्ण-भक्ति न केवल उनकी व्यक्तिगत साधना थी, बल्कि भारतीय संत परंपरा और भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी थी।

मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ – Mirabai Ki Rachnaye

मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ:

मीराबाई एक प्रसिद्ध भक्त कवयित्री थीं, और उनकी रचनाओं में भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और भक्ति का भाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। उनके भजन और पद आज भी भारतीय साहित्य और भक्ति संगीत में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। मीराबाई की रचनाएँ मुख्य रूप से अवधी, ब्रजभाषा, और राजस्थानी भाषाओं में हैं। उनके पदों में श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, आध्यात्मिकता, और सामाजिक बंधनों से विद्रोह की भावना देखने को मिलती है।

प्रमुख रचनाएँ:

  1. मीरा के पद
    मीराबाई की सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में उनके पद शामिल हैं। ये पद उनके व्यक्तिगत अनुभवों, भगवान श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति, और उनके आध्यात्मिक मार्ग पर आधारित होते हैं। उनके पदों में कृष्ण को उनके पति, प्रियतम, और आराध्य के रूप में वर्णित किया गया है। कुछ प्रसिद्ध पद निम्नलिखित हैं:

    • “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई”
      इस पद में मीराबाई ने भगवान कृष्ण को ही अपना सब कुछ माना है, और वे संसार के अन्य किसी व्यक्ति या वस्तु को महत्व नहीं देतीं।

    • “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो”
      इस पद में मीरा ने भगवान कृष्ण को प्राप्त करने को अपने जीवन का सबसे बड़ा धन माना है, और इसे वे सभी सांसारिक संपत्तियों से श्रेष्ठ बताती हैं।

    • “मीरा हो गई मगन, री मैं तो गिरधर के रंग”
      इस पद में मीराबाई भगवान कृष्ण के प्रेम में पूरी तरह मग्न हो गई हैं और समाज के बंधनों को तोड़ चुकी हैं।

  2. गीत गोविंद पर आधारित रचनाएँ
    मीराबाई की कई रचनाएँ जयदेव के प्रसिद्ध “गीत गोविंद” से प्रभावित हैं। इन रचनाओं में राधा-कृष्ण के प्रेम और आध्यात्मिक संवाद को प्रमुखता से व्यक्त किया गया है।

  3. भक्तमाल
    मीराबाई का नाम भक्तमाल में भी मिलता है, जो नाभाजी द्वारा रचित भक्तों की जीवनियों का संग्रह है। इसमें मीराबाई की भक्ति और उनके जीवन के प्रमुख प्रसंगों का उल्लेख किया गया है।

  4. मीरा की माला
    “मीरा की माला” के रूप में मीराबाई की कविताओं और भजनों का एक संग्रह किया गया है, जिसमें उनके द्वारा भगवान कृष्ण के प्रति गाए गए विभिन्न भजनों का संकलन है।

  5. गरबा गीत
    मीरा के जीवन और भक्ति से जुड़े कई गरबा गीत भी प्रसिद्ध हैं, जिनमें वे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपने प्रेम का इज़हार करती हैं।

पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय

नामजन्म तिथिमृत्यु तिथिक्षेत्रप्रमुख योगदान
महात्मा गांधी2 अक्टूबर 186930 जनवरी 1948राजनीतिज्ञभारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता, सत्य और अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक। प्रमुख आंदोलनों में असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह। “हिंद स्वराज” लेखक।
डॉ. भीमराव अंबेडकर14 अप्रैल 18916 दिसंबर 1956राजनीतिज्ञ, समाज सुधारकभारतीय संविधान के निर्माता, दलित अधिकारों के पैरोकार। “जाति का विनाश”, “बुद्ध और उनका धम्म” जैसे सामाजिक साहित्य रचे।
पंडित जवाहरलाल नेहरू14 नवंबर 188927 मई 1964राजनीतिज्ञभारत के पहले प्रधानमंत्री, आधुनिक भारत के निर्माता। “भारत की खोज” और “मेरे संस्मरण” जैसी रचनाएँ कीं।
सरदार वल्लभभाई पटेल31 अक्टूबर 187515 दिसंबर 1950राजनीतिज्ञभारत के लौह पुरुष, स्वतंत्र भारत के पहले उपप्रधानमंत्री। भारत की रियासतों का एकीकरण।
सुभाष चंद्र बोस23 जनवरी 189718 अगस्त 1945 (अनुमानित)राजनीतिज्ञआज़ाद हिंद फौज के संस्थापक। “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” का नारा दिया।
रवींद्रनाथ टैगोर7 मई 18617 अगस्त 1941साहित्यकारनोबेल पुरस्कार विजेता कवि और लेखक। “गीतांजलि”, “गोरा”, “घरे-बाइरे” जैसी प्रसिद्ध रचनाएं। भारतीय राष्ट्रगान “जन गण मन” के रचयिता।
मुंशी प्रेमचंद31 जुलाई 18808 अक्टूबर 1936साहित्यकारहिंदी और उर्दू के महान लेखक। “गोदान”, “गबन”, “कफन” जैसी सामाजिक समस्याओं पर आधारित कहानियां लिखीं।
हरिवंश राय बच्चन27 नवंबर 190718 जनवरी 2003साहित्यकारहिंदी कवि, “मधुशाला” के रचयिता। “नीड़ का निर्माण फिर”, “एकांत-संगीत” जैसे काव्य संग्रह प्रसिद्ध हैं।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन5 सितंबर 188817 अप्रैल 1975राजनीतिज्ञ, साहित्यकारभारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति। भारतीय दर्शन के विशेषज्ञ और “हिंदू दर्शन” और “भारतीय संस्कृति” जैसी रचनाएँ लिखीं।
अटल बिहारी वाजपेयी25 दिसंबर 192416 अगस्त 2018राजनीतिज्ञ, साहित्यकारभारत के पूर्व प्रधानमंत्री और हिंदी कवि। “मेरी इक्यावन कविताएँ”, “मेरी संसद यात्रा” और “क़दम मिलाकर चलना होगा” जैसी प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ।

FAQs

1. मीराबाई कौन थीं?

मीराबाई एक प्रसिद्ध भारतीय भक्त कवयित्री थीं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। वे 16वीं शताब्दी में राजस्थान में पैदा हुईं और भक्ति आंदोलन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थीं।

2. मीराबाई का जन्म कब और कहां हुआ था?

मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी में राजस्थान के जोधपुर जिले के कुड़की गांव (मेड़ता) में हुआ था।

3. मीराबाई का विवाह किससे हुआ था?

मीराबाई का विवाह 13 वर्ष की आयु में मेवाड़ के राजकुमार भोजराज से हुआ था, जो महाराणा सांगा के पुत्र थे।

4. मीराबाई की भक्ति किस देवता के प्रति थी?

मीराबाई की भक्ति भगवान श्रीकृष्ण के प्रति थी। वे कृष्ण को अपना पति और ईश्वर मानती थीं, और उनकी भक्ति उनके पदों और भजनों में प्रकट होती है।

5. मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ कौन सी हैं?

मीराबाई की प्रमुख रचनाओं में “मीरा के पद” शामिल हैं। उनके प्रसिद्ध भजनों में “मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई” और “पायो जी मैंने राम रतन धन पायो” शामिल हैं।

6. मीराबाई का जीवन कैसा था?

मीराबाई का जीवन त्याग, भक्ति और संघर्ष से भरा था। उन्होंने समाज के पारंपरिक नियमों को तोड़कर कृष्ण भक्ति को अपनाया। अपने परिवार और समाज के विरोध के बावजूद, वे श्रीकृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति में लगी रहीं।

7. मीराबाई को समाज और परिवार से क्या विरोध झेलना पड़ा?

मीराबाई की कृष्ण भक्ति और उनके समाज के रीति-रिवाजों को ना मानने के कारण, उन्हें परिवार और समाज से विरोध का सामना करना पड़ा। उनके परिवार ने उन्हें जहर देने का भी प्रयास किया, लेकिन उनकी आस्था के कारण उन्हें कोई हानि नहीं हुई।

8. मीराबाई का निधन कब हुआ?

मीराबाई का निधन 1547 ईस्वी में माना जाता है। उनके जीवन का अंत भी भक्तिमय था, और कुछ कथाओं के अनुसार, वे भगवान कृष्ण की मूर्ति में समा गईं।

9. मीराबाई की भक्ति किस प्रकार की थी?

मीराबाई की भक्ति एक विशिष्ट रूप की “सगुण भक्ति” थी, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण को एक प्रेमी, पति, और आराध्य के रूप में पूजा जाता था। उनकी भक्ति व्यक्तिगत और आत्मीय थी, जो उनके भजनों और कविताओं में प्रकट होती है।

10. मीराबाई का योगदान क्या है?

मीराबाई का योगदान भारतीय भक्ति साहित्य और संगीत में अमूल्य है। उनकी रचनाएँ आज भी भक्ति संगीत के रूप में गाई जाती हैं, और उनके पदों में भगवान कृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम और समर्पण की अभिव्यक्ति होती है।

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