चंद्रगुप्त मौर्य: जानिए भारत के इतिहास में इस महान सम्राट के योगदान के बारे में
By EXAM JOB EXPERT Published: September 11, 2024
चन्द्रगुप्त मौर्य को भारत के सबसे महान शासकों में से एक माना जाता है। वे मध्यकालीन भारत के सबसे शक्तिशाली सम्राटों में से एक थे। उन्होंने ही अपने गुरु चाणक्य के मार्गदर्शन में महान मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी जिस वंश में आगे चलकर अशोक महान जैसे महान शासक का जन्म हुआ था। यहाँ चन्द्रगुप्त मौर्य के जन्म से लेकर उनकी मृत्यु तक उनके जीवन के सभी महत्वपूर्ण घटनाओं और पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।
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चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय
चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 300 ई.पू. में हुआ था। इन्होंने महान मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चन्द्रगुप्त मौर्य पूरे भारत को एक करने में कामयाब रहे थे। उन्होंने भारतवर्ष पर 24 वर्ष तक शासन किया। चन्द्रगुप्त को भारत के इतिहास का एक महान सम्राट माना जाता है। चन्द्रगुप्त मौर्य के गद्दी पर बैठने से पहले सिकंदर ने उत्तर पश्चिमी भारत पर आक्रमण किया था। चन्द्रगुप्त ने अपने गुरु चाणक्य (जिसे कौटिल्य और विष्णु गुप्त के नाम से भी जाना जाता है, जो चन्द्र गुप्त के प्रधानमन्त्री भी थे) के साथ, एक नया साम्राज्य बनाया, राज्यचक्र के सिद्धान्तों को लागू किया, एक बड़ी सेना का निर्माण किया और अपने साम्राज्य की सीमाओं का विस्तार करना जारी रखा।
सिकंदर के आक्रमण के समय लगभग समस्त उत्तर भारत पर धनानंद का शासन था। चाणक्य ने नन्दवंश को ख़त्म करने का निश्चय लिया था। अपनी योजना के तहत चंद्रगुत ने सर्वप्रथम पंजाब पर कब्ज़ा किया। उसका यवनों के विरुद्ध स्वातन्त्यय युद्ध सम्भवतः सिकंदर की मृत्यु के कुछ ही समय बाद आरम्भ हो गया था। जस्टिन के अनुसार ‘सिकन्दर की मृत्यु के उपरान्त भारत ने सान्द्रोकोत्तस के नेतृत्व में दासता के बन्धन को तोड़ फेंका तथा यवन राज्यपालों को मार डाला।’ चन्द्रगुप्त ने यवनों के विरुद्ध अभियान लगभग 323 ई.पू. में आरम्भ किया, किन्तु उन्हें इस अभियान में पूर्ण सफलता 317 ई.पू. या उसके बाद मिली, क्योंकि इसी वर्ष पश्चिम पंजाब के शासक क्षत्रप यूदेमस (Eudemus) ने अपनी सेनाओं सहित, भारत छोड़ा। चन्द्रगुप्त के यवनयुद्ध के बारे में विस्तारपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता। इस सफलता से उन्हें पंजाब और सिन्ध के प्रान्त मिल गए।
चन्द्रगुप्त मौर्य की पहली पत्नी का नाम दुर्धरा था। इनसे उन्हें बिन्दुसार नाम का पुत्र प्राप्त हुआ। उनकी दूसरी पत्नी यूनान के प्रधानमंत्री की पुत्री हेलना थी। इससे उन्हें जस्टिन नाम का पुत्र मिला।
This Blog Includes:
चन्द्रगुप्त मौर्य का जीवन परिचय
चन्द्रगुप्त मौर्य की सैन्य शक्ति
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य
चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था
प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तक
चन्द्रगुप्त मौर्य का अखंड भारत का स्वप्न
चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा प्राप्त की गई विजय
चन्द्रगुप्त मौर्य की सैन्य शक्ति
चंद्रगुप्त मौर्य की सैन्य शक्ति उस समय के सबसे शक्तिशाली साम्राज्यों में से एक मानी जाती थी। उनकी सेना का विस्तार और सैन्य संगठन अद्वितीय था, जिसने उन्हें उत्तरी भारत से लेकर अफगानिस्तान तक एक विशाल साम्राज्य का निर्माण करने में मदद की। उनकी सैन्य शक्ति का प्रमुख योगदान चाणक्य (कौटिल्य) की रणनीतियों और चंद्रगुप्त की नेतृत्व क्षमता से आया था।
1. सेना का आकार:
चंद्रगुप्त मौर्य की सेना विशाल और संगठित थी। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, उनकी सेना में लगभग 6 लाख सैनिक थे, जिसमें विभिन्न प्रकार की सैन्य इकाइयाँ शामिल थीं:
- पैदल सेना (Infantry): सेना का बड़ा हिस्सा पैदल सैनिकों से बना था।
- अश्वारोही सेना (Cavalry): मौर्य साम्राज्य के पास बड़ी संख्या में घुड़सवार सैनिक थे, जो तेज गति से युद्ध कर सकते थे।
- रथ सेना (Chariotry): मौर्य सेना में रथों का भी महत्वपूर्ण स्थान था, जो युद्ध के दौरान कुशलता से उपयोग किए जाते थे।
- हाथी सेना (War Elephants): मौर्य सेना की सबसे विशेषता उनकी विशाल हाथी सेना थी। इन हाथियों का उपयोग दुश्मनों को डराने और उन्हें कुचलने के लिए किया जाता था। उनकी सेना में लगभग 9,000 हाथी थे।
2. सैन्य संगठन:
मौर्य सेना का संगठन बहुत व्यवस्थित और कुशल था। सेना को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया था और प्रत्येक श्रेणी का नेतृत्व अनुभवी और सक्षम सेनापतियों द्वारा किया जाता था। इसके अलावा, सेना को अलग-अलग हिस्सों में बाँटकर राज्य के विभिन्न भागों में तैनात किया गया था, ताकि किसी भी बाहरी आक्रमण का त्वरित रूप से सामना किया जा सके।
3. चाणक्य की रणनीतियाँ:
चंद्रगुप्त मौर्य की सैन्य सफलता में चाणक्य की युद्धनीतियाँ और कूटनीति का भी महत्वपूर्ण योगदान था। चाणक्य ने न केवल उन्हें सामरिक शिक्षा दी, बल्कि उन्हें युद्ध की नीति और कूटनीति सिखाई, जिससे चंद्रगुप्त ने विभिन्न राज्यों को अपनी रणनीति और बुद्धिमानी से जीत लिया। चाणक्य की रणनीति में नंद वंश और सेल्यूकस निकेटर के साथ किए गए युद्धों में सफलताएँ प्रमुख थीं।
4. सैनिक अनुशासन और युद्धकला:
मौर्य सेना के सैनिकों को कठोर अनुशासन और युद्धकला में प्रशिक्षित किया जाता था। वे युद्ध के सभी पहलुओं में निपुण होते थे, जैसे तलवारबाज़ी, धनुर्विद्या, रथ संचालन, और घुड़सवारी। इसके अलावा, मौर्य सेना की विशेषता थी कि वे केवल अपनी ताकत पर ही निर्भर नहीं रहते थे, बल्कि समय-समय पर रणनीतिक परिवर्तन भी करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि उनके दुश्मन उनकी रणनीति का अनुमान नहीं लगा पाते थे।
5. सीमा सुरक्षा और विस्तार:
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सैन्य शक्ति का उपयोग न केवल भारत के विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों को एकजुट करने में किया, बल्कि उन्होंने अपनी सीमाओं का विस्तार कर पश्चिमी एशिया तक फैला दिया। सेल्यूकस निकेटर के साथ संघर्ष में उनकी सेना की विजय मौर्य साम्राज्य की सैन्य ताकत का उदाहरण है। उन्होंने अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों, बलूचिस्तान और उत्तर पश्चिमी भारत को भी अपने साम्राज्य में शामिल किया।
6. सैन्य शक्ति के प्रमुख युद्ध:
- नंद वंश पर विजय: चंद्रगुप्त ने अपने गुरू चाणक्य के साथ मिलकर नंद वंश के अत्याचारी राजा धनानंद को पराजित कर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
- सेल्यूकस निकेटर के साथ युद्ध: सिकंदर महान की मृत्यु के बाद, उसके सेनापति सेल्यूकस निकेटर ने उत्तर-पश्चिमी भारत पर अधिकार किया। चंद्रगुप्त मौर्य ने उसे युद्ध में पराजित किया और पश्चिमी हिस्सों को मौर्य साम्राज्य में मिला लिया।
7. कूटनीतिक विजय:
चंद्रगुप्त मौर्य ने केवल सैन्य बल से ही नहीं, बल्कि कूटनीति का भी उपयोग किया। सेल्यूकस निकेटर के साथ संधि करके उन्होंने कई क्षेत्र प्राप्त किए और सेल्यूकस की बेटी से विवाह कर दोनों साम्राज्यों के बीच अच्छे संबंध स्थापित किए।
चन्द्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य
चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य भारतीय इतिहास का पहला विशाल और संगठित साम्राज्य था, जो न केवल भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से में फैला हुआ था, बल्कि इसकी सीमाएँ आज के अफगानिस्तान और ईरान तक फैली थीं। यह साम्राज्य मौर्य वंश के शासक चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित किया गया था और इसका विस्तार उनके उत्तराधिकारियों, बिंदुसार और अशोक मौर्य के शासनकाल में और भी अधिक हुआ।
1. साम्राज्य की स्थापना:
चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना लगभग 321 ईसा पूर्व की थी। उन्होंने पहले नंद वंश के शासक धनानंद को हराया, जो मगध (वर्तमान बिहार) का शक्तिशाली शासक था। चाणक्य की सहायता से, चंद्रगुप्त ने मगध की राजधानी पाटलिपुत्र पर अधिकार कर मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
2. साम्राज्य का विस्तार:
चंद्रगुप्त मौर्य ने विभिन्न युद्धों और रणनीतिक विजय के माध्यम से अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उनके साम्राज्य में उत्तर भारत, पश्चिमी भारत, और दक्षिण-पश्चिमी भारत के कुछ हिस्से शामिल थे। प्रमुख क्षेत्र जहाँ उनका नियंत्रण था:
उत्तर भारत: चंद्रगुप्त ने सम्पूर्ण उत्तर भारत को अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। यह क्षेत्र वर्तमान उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, और हिमाचल प्रदेश तक फैला था।
पूर्वी भारत: मौर्य साम्राज्य का पूर्वी हिस्सा मगध, बंगाल (वर्तमान पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश) और उड़ीसा तक फैला हुआ था।
पश्चिमी भारत: पश्चिमी भारत के क्षेत्र जैसे गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान को चंद्रगुप्त ने अपने नियंत्रण में ले लिया।
उत्तर-पश्चिम भारत: सिकंदर महान की मृत्यु के बाद, उसकी सेनाओं का उत्तर-पश्चिमी भारत पर नियंत्रण था। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस निकेटर को हराकर अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और सिंध को अपने साम्राज्य में शामिल किया। सेल्यूकस के साथ एक महत्वपूर्ण संधि के तहत, मौर्य साम्राज्य को पश्चिम में भी बड़े क्षेत्र प्राप्त हुए।
दक्षिण भारत: चंद्रगुप्त ने दक्षिणी भारत के कुछ क्षेत्रों, विशेष रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के हिस्सों को भी अपने साम्राज्य में शामिल किया। हालाँकि, उनके उत्तराधिकारी बिंदुसार और अशोक ने दक्षिण भारत का और भी विस्तार किया।
3. राजधानी:
मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना, बिहार) थी। यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और राजनीतिक केंद्र था। पाटलिपुत्र के किले, महल, और जल निकासी प्रणाली बहुत उन्नत मानी जाती थीं, और इसे उस समय की सबसे समृद्ध और प्रभावशाली नगरियों में गिना जाता था।
4. प्रशासन:
चंद्रगुप्त मौर्य का प्रशासन बहुत संगठित और कुशल था। राज्य का प्रबंधन केंद्रीकृत था, और विभिन्न क्षेत्रों के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की गई थी। राज्य की सुरक्षा और नागरिकों की भलाई के लिए विभिन्न प्रकार के विभाग बनाए गए थे। उनके शासन की महत्वपूर्ण विशेषताएँ:
केंद्रीय शासन: मौर्य साम्राज्य का शासन एक केंद्रीय प्रशासनिक प्रणाली पर आधारित था। राज्य की शक्ति शासक के हाथों में थी, लेकिन उन्होंने प्रांतों और जिलों के लिए गवर्नरों और प्रशासकों को नियुक्त किया।
प्रांतीय शासन: साम्राज्य को कई प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिन पर शासक के द्वारा नियुक्त गवर्नरों का शासन था। प्रत्येक प्रांत की राजधानी होती थी और स्थानीय अधिकारियों के अधीन होता था।
चाणक्य की नीतियाँ: चंद्रगुप्त के प्रधानमंत्री और मार्गदर्शक आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) ने प्रशासनिक और कूटनीतिक नीतियों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी पुस्तक अर्थशास्त्र राज्य प्रबंधन, सैन्य व्यवस्था और अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करती थी।
5. साम्राज्य की अर्थव्यवस्था:
मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि, व्यापार, और उद्योग पर आधारित थी। साम्राज्य में कर संग्रहण की सुदृढ़ प्रणाली थी, और राज्य के विभिन्न भागों से करों का संग्रह होता था। प्रमुख नीतियाँ और व्यवस्था:
कृषि: मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। किसानों से भूमि कर लिया जाता था, और उन्हें सिंचाई सुविधाएँ प्रदान की जाती थीं।
व्यापार और उद्योग: मौर्य साम्राज्य में व्यापार बहुत समृद्ध था, और यह कई व्यापारिक मार्गों से जुड़ा हुआ था। विशेष रूप से पश्चिमी एशिया और ग्रीस के साथ व्यापारिक संबंध थे। साम्राज्य में उद्योगों और व्यापारिक संगठनों को बढ़ावा दिया जाता था।
सिक्के: मौर्य साम्राज्य ने व्यवस्थित मुद्रा प्रणाली की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त के समय सोने, चाँदी और तांबे के सिक्कों का प्रचलन था।
6. सैन्य शक्ति:
चंद्रगुप्त मौर्य की सैन्य शक्ति अद्वितीय थी। उनकी विशाल सेना में पैदल सेना, घुड़सवार सेना, रथ सेना और युद्ध हाथी शामिल थे। उनकी सेना की संगठन क्षमता और चाणक्य की रणनीतियों के कारण मौर्य साम्राज्य को निरंतर विजय प्राप्त हुई। पश्चिमी एशिया तक उनकी सेना का दबदबा था।
7. धार्मिक और सांस्कृतिक विकास:
चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में जैन धर्म और हिंदू धर्म का प्रभाव प्रमुख था। अपने जीवन के अंतिम वर्षों में चंद्रगुप्त ने जैन धर्म को अपनाया और सत्ता छोड़कर दक्षिण भारत में श्रवणबेलगोला चले गए। वहाँ उन्होंने संन्यास लिया और अपने अंतिम दिन बिताए।
8. मौर्य साम्राज्य का उत्तराधिकार:
चंद्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिंदुसार और फिर उनके पोते अशोक ने साम्राज्य की बागडोर संभाली। अशोक के शासनकाल में मौर्य साम्राज्य ने अपना सबसे बड़ा विस्तार देखा और बौद्ध धर्म को राज्य धर्म के रूप में अपनाया गया।
चन्द्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था
चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था अत्यंत संगठित और कुशल थी। उन्होंने भारतीय इतिहास में पहली बार एक केंद्रीकृत शासन प्रणाली की स्थापना की, जिससे पूरे साम्राज्य का प्रशासनिक, सैन्य, और आर्थिक प्रबंधन सुनिश्चित हो सके। उनके प्रधानमंत्री आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) का मार्गदर्शन भी इस व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण रहा। चाणक्य की प्रसिद्ध रचना अर्थशास्त्र ने चंद्रगुप्त की शासन व्यवस्था की आधारशिला रखी।
1. केंद्रीय शासन:
मौर्य साम्राज्य का शासन केंद्रीकृत था, जहाँ सम्राट सत्ता का सर्वोच्च केंद्र था। सभी बड़े निर्णय सम्राट के हाथ में होते थे, जबकि अन्य अधिकारियों और गवर्नरों को साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में नियुक्त किया गया था।
सम्राट: चंद्रगुप्त मौर्य स्वयं राज्य का सर्वोच्च शासक था। वह राज्य के सभी प्रमुख विभागों और प्रशासनिक व्यवस्थाओं पर नियंत्रण रखता था। उसकी सभी सेनाएँ, आर्थिक नीतियाँ, और राजनैतिक योजनाएँ उसके निर्देशानुसार संचालित होती थीं।
प्रधानमंत्री (मंत्री परिषद): चंद्रगुप्त का सबसे प्रमुख सहायक आचार्य चाणक्य था, जो राज्य का प्रधानमंत्री था। चाणक्य ने नीतिगत दिशा निर्देश और प्रशासनिक सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके अधीन एक मंत्रिपरिषद होती थी, जिसमें साम्राज्य के प्रमुख विभागों के मंत्री होते थे, जैसे वित्त, रक्षा, और विदेश नीति के मंत्री।
2. प्रांतीय शासन:
मौर्य साम्राज्य को प्रभावी ढंग से चलाने के लिए इसे विभिन्न प्रांतों में विभाजित किया गया था, जिन्हें जनपद कहा जाता था। प्रत्येक प्रांत का प्रशासनिक कार्यभार एक गवर्नर के हाथों में होता था, जिसे महामात्र कहा जाता था। गवर्नरों का कार्य था:
- प्रांतों में कानून व्यवस्था बनाए रखना।
- करों का संग्रहण और केंद्रीय प्रशासन को रिपोर्ट करना।
- प्रांतीय सेना का प्रबंधन और सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करना।
प्रांतों के अंतर्गत भी छोटे प्रशासनिक क्षेत्र होते थे, जिन्हें जिला स्तर पर विभाजित किया गया था। जिलों के अधिकारी राजुक कहलाते थे, जो स्थानीय स्तर पर प्रशासन और न्याय व्यवस्था का संचालन करते थे।
3. स्थानीय शासन:
प्रांतों और जिलों के अलावा, मौर्य शासन में गाँव और नगरों की भी स्थानीय शासन व्यवस्था थी। प्रत्येक गाँव का प्रमुख ग्रामिक होता था, जो कृषि, कर संग्रहण, और कानून व्यवस्था का ध्यान रखता था। नगरों में नगराधिपति की नियुक्ति होती थी, जो व्यापार, उद्योग और नगर की सुरक्षा व्यवस्था को नियंत्रित करता था।
- नगर प्रशासन: नगर प्रशासन में कई अधिकारी होते थे, जैसे व्यापार, आयात-निर्यात, उद्योग और सफाई आदि के प्रभारी। नगर की सुरक्षा और न्यायिक व्यवस्था के लिए भी विशेष अधिकारी होते थे।
4. राजस्व और कर प्रणाली:
चंद्रगुप्त मौर्य की शासन व्यवस्था में कर प्रणाली अत्यधिक संगठित थी। कृषि और व्यापार से प्राप्त करों का संग्रहण राज्य की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था। करों को विभिन्न स्रोतों से इकट्ठा किया जाता था:
भूमि कर: किसानों से भूमि कर लिया जाता था, जिसे भाग कहा जाता था। यह कर राज्य की आय का सबसे प्रमुख स्रोत था।
व्यापार कर: व्यापार और वाणिज्य पर भी कर लगाया जाता था। वस्तुओं के आयात और निर्यात पर भी कर लगता था, जिससे राज्य को अतिरिक्त आय होती थी।
अन्य कर: व्यापारिक गतिविधियों, पशुपालन, और शिल्पकारों से भी कर संग्रह किया जाता था।
5. न्याय व्यवस्था:
मौर्य शासन की न्याय व्यवस्था भी अत्यधिक संगठित थी। साम्राज्य के सभी नागरिकों को न्याय दिलाने के लिए सम्राट के अधीन एक विशेष न्यायिक विभाग स्थापित किया गया था। न्यायिक अधिकारी विभिन्न स्तरों पर नियुक्त होते थे, और वे कानून व्यवस्था के उल्लंघन करने वालों को सजा देते थे।
राजुक: ये स्थानीय स्तर के अधिकारी होते थे, जो न्यायिक मामलों का निपटारा करते थे। वे छोटे-मोटे विवादों और अपराधों का निपटारा करते थे।
धर्मस्थ: ये न्यायाधीश होते थे, जो धार्मिक और नैतिक आधार पर न्याय करते थे। वे कानून और धर्म के नियमों का पालन करते हुए न्याय करते थे।
कूटदंड: ये अधिकारी गुप्तचरों की तरह काम करते थे और अपराधों की जांच करते थे। उनका मुख्य कार्य राज्य के भीतर अपराधियों की पहचान और राज्य के खिलाफ षड्यंत्रों को रोकना था।
6. सेना और सुरक्षा:
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सेना को अत्यधिक संगठित किया था। उनकी सेना में चार मुख्य अंग थे: पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी सेना, और रथ सेना। उन्होंने साम्राज्य की सुरक्षा के लिए व्यापक रूप से सैनिकों की नियुक्ति की और सीमाओं की रक्षा के लिए किलेबंदी की।
हाथी सेना: मौर्य साम्राज्य की सबसे महत्वपूर्ण सैन्य विशेषता थी उसकी हाथी सेना। हाथी न केवल युद्ध में बल का प्रतीक थे, बल्कि दुश्मनों को डराने के लिए भी प्रभावी थे।
कूटनीति और सुरक्षा: चंद्रगुप्त ने आंतरिक सुरक्षा के लिए गुप्तचर विभाग की स्थापना की थी। ये गुप्तचर पूरे साम्राज्य में फैले होते थे और सम्राट को महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करते थे।
7. आर्थिक और व्यापारिक नीति:
मौर्य साम्राज्य की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित थी, लेकिन व्यापार को भी विशेष प्रोत्साहन दिया गया था। चंद्रगुप्त के शासनकाल में व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया, जिससे व्यापारिक गतिविधियाँ फल-फूल सकीं।
अंतर्राष्ट्रीय व्यापार: चंद्रगुप्त ने पश्चिमी एशिया और यूनानी राज्यों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए। सेल्यूकस निकेटर के साथ संधि ने ग्रीक क्षेत्रों के साथ व्यापारिक मार्गों को खोलने में मदद की।
सिक्के: मौर्य शासन में सुव्यवस्थित मुद्रा प्रणाली थी। सोने, चाँदी, और तांबे के सिक्कों का प्रचलन था, जो व्यापारिक लेन-देन के लिए इस्तेमाल होते थे।
8. धार्मिक नीति:
चंद्रगुप्त मौर्य की धार्मिक नीति सहिष्णुता पर आधारित थी। यद्यपि उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में जैन धर्म अपनाया, लेकिन उनके शासन में सभी धर्मों को समान अधिकार और सम्मान प्राप्त था। धार्मिक स्थलों और मठों को राज्य द्वारा संरक्षण प्राप्त था।
प्राचीन ऐतिहासिक पुस्तक
- अर्थशास्त्र , कौटिल्य
- मुद्रा राक्षस , विशाखा दत्ता
- इंडिका, मेगास्थेनेस
- महाभाष्य , पतंजलि
- मालविकाग्निमित्रम् , कालीदास
- हर्षचरित , बाणभट्ट
अभिलेख / शिलालेख प्रमाण
- अशोक के अभिलेख / शिलालेख
- खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख
चन्द्रगुप्त मौर्य का अखंड भारत का स्वप्न
चंद्रगुप्त मौर्य को भारतीय इतिहास में उस शासक के रूप में जाना जाता है जिसने अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को एक साम्राज्य के अंतर्गत संगठित किया और भारतीय इतिहास का पहला विशाल और संगठित साम्राज्य (मौर्य साम्राज्य) स्थापित किया। यह साम्राज्य उत्तर से लेकर दक्षिण और पूर्व से लेकर पश्चिम तक फैला हुआ था, जिसे एक “अखंड भारत” के रूप में देखा जा सकता है।
1. अखंड भारत का विचार:
अखंड भारत का विचार उस समय एक बहुत ही बड़ा और महत्वाकांक्षी लक्ष्य था। भारतीय उपमहाद्वीप में कई छोटे-छोटे राज्य और राजवंश थे, जिनमें निरंतर युद्ध और संघर्ष होते रहते थे। ऐसे समय में, एक विशाल और संगठित साम्राज्य स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। चंद्रगुप्त मौर्य ने इस चुनौती को स्वीकार किया और चाणक्य (कौटिल्य) के मार्गदर्शन में अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने की दिशा में कदम बढ़ाया।
2. मगध साम्राज्य की नींव और विस्तार:
चंद्रगुप्त मौर्य ने पहले मगध के शक्तिशाली नंद वंश को पराजित किया और पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में मौर्य साम्राज्य की नींव रखी। इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे अपने साम्राज्य का विस्तार उत्तर भारत के कई हिस्सों में किया। उनके द्वारा विजित क्षेत्र इस प्रकार थे:
उत्तर भारत: चंद्रगुप्त ने कश्मीर, पंजाब, और उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिलाया।
पश्चिमी भारत: उन्होंने गुजरात और राजस्थान के क्षेत्रों पर भी अधिकार कर लिया।
पूर्वी भारत: मगध से शुरू होकर उनका साम्राज्य बंगाल और उड़ीसा तक फैल गया।
3. सेल्यूकस निकेटर के साथ संघर्ष और संधि:
सिकंदर महान की मृत्यु के बाद, उसके सेनापति सेल्यूकस निकेटर ने उत्तर-पश्चिमी भारत पर अधिकार कर लिया था। चंद्रगुप्त ने इस क्षेत्र पर अपनी नजर डाली और सेल्यूकस से युद्ध किया। 305 ईसा पूर्व में, चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को पराजित किया और एक महत्वपूर्ण संधि की, जिसके तहत अफगानिस्तान, बलूचिस्तान और पश्चिमी पंजाब के बड़े हिस्से मौर्य साम्राज्य में शामिल हो गए। इस संधि के बाद चंद्रगुप्त का साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान और ईरान तक फैल गया।
4. दक्षिण भारत की विजय:
चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों को भी अपने साम्राज्य में शामिल किया। हालाँकि, उनके पोते अशोक ने दक्षिण भारत के कई और क्षेत्रों को मौर्य साम्राज्य में मिलाया। लेकिन चंद्रगुप्त ने इस दिशा में पहला कदम बढ़ाया और दक्षिण भारत के कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को अपने अधीन किया।
5. अखंड भारत की संकल्पना:
चंद्रगुप्त मौर्य के समय में भारत कोई एकीकृत राष्ट्र नहीं था, बल्कि छोटे-छोटे राज्य थे जो एक दूसरे से लगातार संघर्ष में रहते थे। चंद्रगुप्त मौर्य ने इन छोटे राज्यों को संगठित कर एक अखंड और मजबूत साम्राज्य का निर्माण किया। उनके शासनकाल में मौर्य साम्राज्य में विविध जातियों, संस्कृतियों और धर्मों का समावेश था, जिससे भारत के विभिन्न क्षेत्रों को एकसाथ लाने का उनका स्वप्न पूरा हुआ।
6. चाणक्य की भूमिका:
चाणक्य का राजनीतिक दर्शन चंद्रगुप्त के अखंड भारत के स्वप्न को साकार करने में महत्वपूर्ण था। अर्थशास्त्र में चाणक्य ने एक सशक्त राज्य की संकल्पना की थी, जिसमें राज्य की सीमाओं को विस्तारित करना और एक एकीकृत शासन स्थापित करना प्रमुख था। चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को एकसाथ लाकर एक संगठित और स्थिर साम्राज्य की स्थापना की।
7. अखंड भारत का महत्व:
चंद्रगुप्त मौर्य के अखंड भारत के स्वप्न ने भारतीय इतिहास में कई महत्वपूर्ण बदलाव लाए:
राजनीतिक एकीकरण: विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों को एक सशक्त और केंद्रीकृत शासन प्रणाली के अंतर्गत लाकर मौर्य साम्राज्य ने राजनीतिक स्थिरता प्रदान की।
सांस्कृतिक एकीकरण: मौर्य साम्राज्य में विभिन्न भाषाओं, धर्मों और संस्कृतियों का समावेश था। यह सांस्कृतिक विविधता अखंड भारत की भावना को सशक्त बनाती थी।
आर्थिक समृद्धि: अखंड भारत के निर्माण से व्यापार और वाणिज्य का विकास हुआ। आंतरिक और बाहरी व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित किया गया, जिससे साम्राज्य में समृद्धि आई।
चन्द्रगुप्त मौर्य के द्वारा प्राप्त की गई विजय
चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी सैन्य शक्ति और राजनीतिक चतुराई के बल पर कई महत्वपूर्ण विजय प्राप्त कीं, जिससे मौर्य साम्राज्य की स्थापना और विस्तार संभव हुआ। उनकी प्रमुख विजयों ने उन्हें भारत के सबसे महान सम्राटों में से एक बना दिया। यहाँ चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा प्राप्त की गई प्रमुख विजय का विवरण दिया जा रहा है:
1. नंद वंश की विजय (मगध पर अधिकार):
चंद्रगुप्त मौर्य की सबसे पहली और महत्वपूर्ण विजय मगध के शक्तिशाली नंद वंश के खिलाफ थी। नंद वंश का राज्य अत्यंत समृद्ध और शक्तिशाली था, लेकिन उसकी निरंकुशता और अत्याचारी नीतियों के कारण जनता में असंतोष था। आचार्य चाणक्य के मार्गदर्शन में, चंद्रगुप्त ने नंद राजा धननंद को पराजित किया और मगध पर अधिकार कर लिया। इस विजय के बाद चंद्रगुप्त ने पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) को अपनी राजधानी बनाया और मौर्य साम्राज्य की नींव रखी।
2. पश्चिमोत्तर भारत (सेल्यूकस निकेटर पर विजय):
चंद्रगुप्त की दूसरी बड़ी विजय पश्चिमोत्तर भारत में हुई। सिकंदर महान की मृत्यु के बाद, उसके सेनापति सेल्यूकस निकेटर ने पूर्वी क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश की, जिसमें भारत का पश्चिमोत्तर हिस्सा (आज का पंजाब, सिंध, और अफगानिस्तान) भी शामिल था। चंद्रगुप्त ने 305 ईसा पूर्व में सेल्यूकस से युद्ध किया और उसे पराजित किया।
इस युद्ध के बाद एक संधि हुई, जिसके अनुसार सेल्यूकस को अपने नियंत्रण के कुछ हिस्से चंद्रगुप्त को सौंपने पड़े, जिनमें अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, और पश्चिमी पंजाब के क्षेत्र शामिल थे। इसके बदले में चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी दिए, जो उसकी सेना के लिए महत्वपूर्ण थे। इस संधि से चंद्रगुप्त के साम्राज्य का विस्तार पश्चिमोत्तर भारत तक हो गया और भारत-यूनान संबंध मजबूत हुए।
3. उत्तर भारत का एकीकरण:
नंद वंश पर विजय प्राप्त करने के बाद, चंद्रगुप्त ने उत्तर भारत के छोटे-छोटे राजाओं को हराकर उन्हें अपने साम्राज्य में मिला लिया। उन्होंने पंजाब, कश्मीर, और उत्तर प्रदेश के अधिकांश हिस्सों को जीतकर मौर्य साम्राज्य का विस्तार किया। इन क्षेत्रों पर विजय के बाद, उनका साम्राज्य उत्तर भारत के बड़े हिस्से में फैल गया।
4. पश्चिमी भारत पर विजय:
चंद्रगुप्त ने राजस्थान और गुजरात के क्षेत्रों को भी अपने साम्राज्य में शामिल किया। यह क्षेत्र पश्चिमी भारत में व्यापार के लिए महत्वपूर्ण थे, और इन पर अधिकार कर उन्होंने मौर्य साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को और मजबूत किया। गुजरात के समुद्री मार्गों ने मौर्य साम्राज्य को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में हिस्सा लेने का अवसर दिया।
5. दक्षिण भारत में विजय:
चंद्रगुप्त मौर्य ने दक्षिण भारत की ओर भी अपने साम्राज्य का विस्तार किया। हालाँकि उनके पोते अशोक ने दक्षिण भारत के कई हिस्सों को मौर्य साम्राज्य में जोड़ा, लेकिन चंद्रगुप्त ने दक्षिण के कुछ हिस्सों पर अधिकार कर अपनी सीमाओं का विस्तार किया। विशेष रूप से उन्होंने कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों को अपने अधीन किया।
6. मौर्य साम्राज्य का विस्तार:
चंद्रगुप्त की सैन्य विजयों और राजनीतिक कुशलता के परिणामस्वरूप मौर्य साम्राज्य का विस्तार निम्नलिखित क्षेत्रों तक हुआ:
- उत्तर में हिमालय के पर्वत
- दक्षिण में कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के हिस्से
- पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान
- पूर्व में बंगाल
इस विशाल साम्राज्य की स्थापना ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को पहली बार एक केंद्रीकृत शासन के अधीन लाया, जिसे “अखंड भारत” का रूप कहा जाता है।
7. कूटनीतिक विजय:
चंद्रगुप्त की सैन्य विजय के साथ-साथ उनकी कूटनीतिक सफलताएँ भी महत्वपूर्ण थीं। सेल्यूकस निकेटर के साथ संधि के बाद, मौर्य साम्राज्य ने यूनानियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए। सेल्यूकस ने अपनी बेटी का विवाह चंद्रगुप्त से किया और मौर्य साम्राज्य में मेगस्थनीज़ जैसे ग्रीक राजदूत को भेजा, जिसने चंद्रगुप्त के शासन और मौर्य साम्राज्य के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी लिखी। यह कूटनीतिक विजय मौर्य साम्राज्य के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
चन्द्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव
चंद्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव उनके जीवन के अंतिम चरण में हुआ, जब उन्होंने राजनीति और सत्ता से दूरी बनाकर आध्यात्मिकता की ओर रुख किया। इस झुकाव की कहानी एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है, जिसमें चंद्रगुप्त ने अपनी साम्राज्यवादी जीवनशैली को त्यागकर संन्यास धारण किया और जैन धर्म को अपनाया। यह घटना भारतीय इतिहास और जैन धर्म के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मानी जाती है।
चंद्रगुप्त मौर्य का जैन धर्म की ओर झुकाव:
अशांति और संन्यास की इच्छा: चंद्रगुप्त मौर्य ने अपने जीवन का अधिकांश समय युद्धों और साम्राज्य विस्तार में व्यतीत किया। उनके जीवन के अंतिम चरण में, जब वे वृद्ध हो चुके थे, तो उनके भीतर संसारिक जीवन से मोहभंग और वैराग्य की भावना जागृत हुई। यह भावना उन्हें एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक जीवन की ओर ले गई, जिसमें उन्होंने धर्म और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग चुना।
जैन आचार्य भद्रबाहु का प्रभाव: चंद्रगुप्त के जैन धर्म की ओर झुकाव का मुख्य कारण जैन आचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। भद्रबाहु जैन धर्म के प्रसिद्ध आचार्य थे और जैन धर्म के श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के अनुयायियों में उनकी बहुत प्रतिष्ठा थी। कहा जाता है कि भद्रबाहु के प्रवचनों और शिक्षाओं से प्रभावित होकर चंद्रगुप्त ने जैन धर्म की शिक्षाओं को गहराई से अपनाया और संन्यास का मार्ग चुना।
सम्राट से संन्यासी तक का सफर: जैन धर्म के सिद्धांतों से प्रभावित होकर, चंद्रगुप्त ने राजनीति और सत्ता को त्यागने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने पुत्र बिंदुसार को राज्य सौंप दिया और स्वयं जैन धर्म के अनुयायी बन गए। इसके बाद चंद्रगुप्त ने आचार्य भद्रबाहु के साथ दक्षिण भारत की यात्रा की, जहाँ उन्होंने अपनी बाकी की ज़िन्दगी संन्यासी के रूप में बिताई।
श्रवणबेलगोला में निर्वाण: दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित श्रवणबेलगोला वह स्थान है जहाँ चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी अंतिम शरण ली। जैन परंपरा के अनुसार, चंद्रगुप्त ने वहाँ आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में कठोर तपस्या की और अंततः सल्लेखना व्रत (भूख और प्यास के द्वारा शरीर का त्याग) धारण कर अपनी जीवन लीला समाप्त की। यह घटना जैन धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है और श्रवणबेलगोला को एक पवित्र तीर्थस्थल के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है।
सल्लेखना व्रत: जैन धर्म में सल्लेखना एक महत्वपूर्ण व्रत है, जिसे मोक्ष की प्राप्ति के लिए धारण किया जाता है। इस व्रत के अंतर्गत व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और जल का त्याग कर शरीर का परित्याग करता है। चंद्रगुप्त ने इसी व्रत को धारण कर अपने जीवन का समापन किया। यह उनके आध्यात्मिक विश्वास और जैन धर्म के प्रति उनकी गहरी निष्ठा को दर्शाता है।
धर्म और सत्ता का त्याग: चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन में जैन धर्म की ओर झुकाव ने यह संदेश दिया कि एक शक्तिशाली सम्राट भी सत्ता और संसारिक मोह-माया को त्यागकर धर्म और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर चल सकता है। चंद्रगुप्त का यह निर्णय उनकी विनम्रता, वैराग्य, और आत्मसंयम का प्रतीक माना जाता है।
चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु
चन्द्रगुप्त मौर्य की मृत्यु 340 ई.पू. में हुई थी। कहा जाता है कि उन्होंने संथरा नियम का पालन करते हुए खुद अपने प्राण त्याग दिए थे। संथरा एक प्रकार का जैन धर्म का वृत होता है जिसमें व्यक्त तब तक कुछ खाया पिया नहीं जाता जब तक वह मृत्यु को प्राप्त नहीं हो जाता। कुछ इतिहाकारों के मुताबिक चन्द्रगुप्त मौर्य ने संथरा वृत का पालन करते हुए कर्णाटक में अपने प्राण त्याग दिए थे।
FAQs
1. चंद्रगुप्त मौर्य कौन थे?
चंद्रगुप्त मौर्य मौर्य साम्राज्य के संस्थापक और भारत के पहले सम्राट थे। उन्होंने लगभग 321 ईसा पूर्व में मगध के नंद वंश को हराकर मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी। चंद्रगुप्त ने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से को एकजुट किया और एक मजबूत और केंद्रीकृत शासन स्थापित किया।
2. चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल कब था?
चंद्रगुप्त मौर्य का शासनकाल लगभग 321 ईसा पूर्व से 297 ईसा पूर्व तक रहा। इस दौरान उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप के बड़े हिस्से पर विजय प्राप्त की और मौर्य साम्राज्य को स्थापित किया।
3. चंद्रगुप्त मौर्य ने किसके मार्गदर्शन में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की?
चंद्रगुप्त मौर्य ने आचार्य चाणक्य (कौटिल्य) के मार्गदर्शन में मौर्य साम्राज्य की स्थापना की। चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजनीतिक और सैन्य कौशल सिखाया और नंद वंश को हराने में मदद की।
4. चंद्रगुप्त मौर्य की प्रमुख विजय कौन-कौन सी थीं?
चंद्रगुप्त मौर्य ने कई महत्वपूर्ण विजय प्राप्त कीं, जिनमें प्रमुख थीं:
- मगध के नंद वंश पर विजय
- सेल्यूकस निकेटर के साथ संघर्ष और पश्चिमोत्तर भारत पर विजय
- उत्तर, पश्चिमी, और दक्षिण भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर विजय
5. चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म कब अपनाया?
अपने जीवन के अंतिम चरण में, चंद्रगुप्त मौर्य ने राजनीति और सत्ता को त्यागकर जैन धर्म अपनाया। उन्होंने आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन धर्म की दीक्षा ली और संन्यासी बन गए।
6. चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु कैसे हुई?
चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म का पालन करते हुए सल्लेखना व्रत धारण किया, जिसमें धीरे-धीरे भोजन और पानी का त्याग किया जाता है। उन्होंने श्रवणबेलगोला (कर्नाटक) में कठोर तपस्या के माध्यम से अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु लगभग 297 ईसा पूर्व में हुई।
7. चंद्रगुप्त मौर्य का साम्राज्य कितना बड़ा था?
चंद्रगुप्त मौर्य ने भारत के उत्तर से दक्षिण तक और पश्चिम से पूर्व तक एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। मौर्य साम्राज्य की सीमाएँ उत्तर में हिमालय, पश्चिम में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान, पूर्व में बंगाल, और दक्षिण में कर्नाटक तक फैली हुई थीं।
8. चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उनके साम्राज्य का उत्तराधिकारी कौन था?
चंद्रगुप्त मौर्य के बाद उनके पुत्र बिंदुसार ने मौर्य साम्राज्य की गद्दी संभाली। बिंदुसार ने अपने पिता की तरह साम्राज्य को और सशक्त किया और उसे स्थिरता प्रदान की।
9. चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर कौन-सी पुस्तकें उपलब्ध हैं?
चंद्रगुप्त मौर्य के जीवन पर कई प्राचीन ग्रंथों और ऐतिहासिक स्रोतों में जानकारी मिलती है, जिनमें प्रमुख हैं:
- अर्थशास्त्र (चाणक्य द्वारा लिखित)
- इंडिका (मेगस्थनीज द्वारा लिखित, जो सेल्यूकस का राजदूत था)
इन पुस्तकों और अन्य ऐतिहासिक स्रोतों से चंद्रगुप्त के जीवन और शासन के बारे में जानकारी मिलती है।
10. चंद्रगुप्त मौर्य का संबंध सिकंदर महान से कैसे था?
चंद्रगुप्त मौर्य ने सिकंदर महान की मृत्यु के बाद उसके सेनापति सेल्यूकस निकेटर से युद्ध किया था। चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को पराजित किया और एक संधि के माध्यम से पश्चिमोत्तर भारत के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इसके बदले में चंद्रगुप्त ने सेल्यूकस को 500 हाथी दिए और उनके बीच मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।